Sawan Shivratri 2023 Live: सावन शिवरात्रि आज, जानें शिव पूजा का मुहूर्त -: पंडित गौरव पचौरी
Sawan Shivratri 2023 Live: सावन शिवरात्रि आज, जानें शिव पूजा का मुहूर्त -: पंडित गौरव पचौरी
सावन शिवरात्रि पर कौन कौन सी राशियों की चमकेगी किस्मत
सावन शिवरात्रि पर इस बार कर्क, कन्या, सिंह और वृषभ राशि का भाग्य चमकने वाला है. इन राशि के लोगों के अटके कार्य पूरे होंगे. धन से स्तोत्र बढ़ेंगे जिससे आर्थिक स्थिति सुधरेगी. बिजनेस करने वाले जातकों के लिए ये समय अनुकूल है. पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ेगा. मनचाहे साथी से शादी के योग हैं.
इस बार सावन की शिवरात्रि दिलाएगा शनि दोष से मुक्ति
सावन शिवरात्रि इस साल शनिवार के दिन है. ऐसे में जिन लोगों की कुंडली में कालसर्पदोष, पितृदोष और शनि का प्रकोप है वे सावन शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक,पंचामृत या रुद्राभिषेक जरुर करें. साथ ही मंदिर में बेलपत्र का पौधा लगाएं. मान्यता है इससे ग्रहों की अशुभता दूर होती है.
क्या है सावन शिवरात्रि की पूजा विधि
सावन शिवरात्रि के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें. शिव जी के समक्ष पूजा स्थान में दीप प्रज्वलित करें. घर या मंदिर में दूध, और गंगाजल आदि से अभिषेक करें. विधि विधान से उनकी पूजा करें. रात्रि के समय भी अभिषेक कर बेलपत्र, धतूरा, पुष्प आदि सामग्री चढ़ाएं. शिव को भोग लगाएं और आरती करें. इस दिन माता पार्वती की पूजा भी करें.
जलभिषेक करें सावन की शिवरात्रि में
पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन सावन में हुआ था. इस दौरानशिव जी ने मंथन से निकले विष का पान कर लिया था. जिसके बाद भोलेनाथ असहज हो गए थे, तभी समस्त देवी-देवताओं ने भोलेनाथ पर जल अर्पित किया जिससे विष का असर कम हो गया. ऐसा माना जाता है कि अगर सावन में पड़नी वाली शिवरात्रि के दिन शिव जी पर जल अर्पित करें तो आपके सभी दुख का नाश होगा.
सावन शिवरात्रि का सबसे शक्तिशाली मंत्र
शत्रु बाधा से परेशान है, विरोधी हर काम के आड़े आ रहा है तो सावन शिवरात्रि पर शिव जी को जल अर्पित करते हुए इस मंत्र का 108 बार जाप करें, शिव पुराण के अनुसार ये साधक की हर बाधा को नाश करने की शक्ति रखता है.
ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।
सावन शिवरात्रि 2023 चार प्रहर की पूजा
सावन शिवरात्रि प्रथम प्रहर पूजा – 07.21 PM – 09.54 PM (15 जुलाई 2023)
सावन शिवरात्रि दूसरा प्रहर पूजा – 15 जुलाई, 09.54 PM – 16 जुलाई, 12.27 AM
सावन शिवरात्रि तीसरा प्रहर पूजा – 12.27 AM – 03.03 AM (16 जुलाई 2023)
सावन शिवरात्रि चौथे प्रहर की पूजा – 03.03 AM – 05.33 AM (16 जुलाई 2023)
सुखी दांपत्य जीवन में परेशानी है तो कर लें ये उपाय
सावन शिवरात्रि के दिन रात्रि के समय आटे का चौमुखी दीपक जलाकर शिवलिंग पर दही की धारा बनाकर चढ़ाएं. शिव चालीसा का 5 बार पाठ करें. मान्यता है इससे वैवाहिक जीवन में तनाव नहीं रहता. पति-पत्नी में मनमुटाव खत्म होता है, प्यार बढ़ता है
पूजा सामग्री क्या कुछ चाहिए शिव जी पूजा के लिए
गंगाजल, जल, दूध दही, शुद्ध देशी घी, शहद, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, आम्र मंजरी, जौ की बालें, पुष्प, पूजा के बर्तन, कुशासन, मदार पुष्प, पंच मिष्ठान्न, बेलपत्र, धतूरा, भांग, बेर, गुलाल, अबीर, भस्म, सफेद चंदन, पंच फल, दक्षिणा, गन्ने का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव जी और मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि.
सावन का महीना 4 जुलाई 2023 से शुरू हुआ था. शिव के प्रिय सावन में सोमवार के अलावा प्रदोष व्रत और शिवरात्रि का दिन भोलेनाथ की पूजा के लिए अधिक पुण्यफलदायी माना जाता है. इस साल सावन शिवरात्रि 15 जुलाई 2023 शनिवार को है.
वैसे तो हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है लेकिन सावन में आने वाली शिवरात्रि सबसे खास मानी जाती है. इस दिन कांवड़ यात्रा का समापन होता है, कांवड़िए गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं.
सावन शिवरात्रि 2023 मुहूर्त
सावन की पहली मासिक शिवरात्रि का व्रत 15 जुलाई 2023 को है. इस दिन सावन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 15 जुलाई को रात 08.32 मिनट से 16 जुलाई 2023 को रात 10.08 मिनट तक रहेगी. शिवरात्रि में शिव पूजा निशिता काल मुहूर्त में की जाती है. इस दिन शिव पूजा देर रात्रि 12.07 – 12.48 पर की जाएगी.
सावन शिवरात्रि महत्व
शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक है. हर साल सावन की शुरुआत से कांवड़ यात्रा शुरू प्रारंभ हो जाती है जिसका समापन सावन शिवरात्रि के दिन होता है. मान्यता है कि सावन शिवरात्रि के दिन गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करने वालों पर महादेव की विशेष कृपा बरसती है. इस दिन मां गौरी को सुहाग की सामग्री अर्पित करने से पति की आयु लंबी होती है. जीवन के हर कष्ट दूर हो जाते हैं. वैवाहिक जीवन में सुख, संतान प्राप्ति और आर्थिक लाभ पाना चाहते हैं तो सावन शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक और जलाभिषेक करें.
शिव पुराण में इस व्रत का उल्लेख करते हुए लिखा है कि जो कोई भी इंसान इस दिन सच्चे मन से पूजा करता है और व्रत रखता है उसकी सभी इच्छाएं अवश्य पूरी हो जाती हैं. कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए ये व्रत रखती है. इस दिन पंचामृत से रात्रि के समय शिव का अभिषेक करना श्रेष्ठ माना जाता है. सावन शिवरात्रि के दिन चार प्रहर की पूजा का भी विधान है.
क्या कावंड यात्रा करने से होते है भोलेनाथ खुस
सावन के महीने में शिव आराधना का बड़ा महत्व है। इस दौरान जगह-जगह कांवड़ियों की लम्बी कतारें बम बम भोले के जयकारे लगाते हुए दिखती हैं। हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवड़िए सुदूर स्थानों से आकर गंगाजल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं। इस यात्रा को कांवड़ यात्रा बोला जाता है। श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगाजल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है। इस दौरान श्रद्धालु कांवड़ को जमीन पर नहीं रखते हैं। कांवड़ चढ़ाने वाले लोगों को कांवड़ियां कहा जाता है। ज्यादातर कांवड़ियां केसरी रंग के कपड़े पहनते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा करने से भगवान शिव सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं और जीवन के सभी संकटों को दूर करते हैं। आइए जानते हैं कैसे शुरू हुई कांवड़ यात्रा की शुरुआत।
पहली कथा
एक बार कामधेनु को पाने के लालच में राजा सहस्त्रबाहुने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी थी। फिर पिता की हत्या का बदला लेने के लिए परशुराम ने राजा की भुजाओं को काट दिया, जिससे उसकी भी मृत्यु हो गई। भगवान परशुराम की कठोर तपस्या के बाद ऋषि जमदग्नि को जीवनदान मिल गया। तब उन्होंने अपने पुत्र परशुराम को सहस्त्रबाहु की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करने को कहा। जिसके बाद परशुराम मीलों पैदल यात्रा कर कांवड़ में गंगाजल भरकर लाए और उन्होंने आश्रम के पास ही शिवलिंग की स्थापना कर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था। इसी कारण से भगवान परशुराम को संसार का पहला कांवड़िया कहा जाता है।
दूसरी कथा
आनंद रामायण के अनुसार भगवान राम पहले कांवड़िया थे। भगवान राम ने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था। उस समय सावन मास चल रहा था। मान्यता है की तभी से कावड़ यात्रा शुरू हुई।
तीसरी कथा
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने समुद्र मंथन में निकले विष को पी लिया था। जहर के नकारात्मक प्रभावों ने भोलेनाथ को असहज कर दिया था। भगवान शंकर को इस पीड़ा से मुक्त कराने के लिए उनके परमभक्त रावण ने कांवड़ में गंगाजल भरकर कई बरसों तक महादेव का जलाभिषेक किया था। जिसके बाद भगवान शिव जहर के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हो गए थे। तभी से कांवड़ यात्रा का आरंभ माना गया और रावण को पहला कांवड़िया माना जाता है।
चौथी कथा
कुछ ग्रंथों में त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा शुरू की थी। श्रवण कुमार ने अंधे माता पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जाने के लिए कांवड़ बैठाया था। श्रवण कुमार के माता पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की थी, माता पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार कांवड़ में ही हरिद्वार ले गए और उनको गंगा स्नान करवाया। वापसी में वे गंगाजल भी साथ लेकर आए थे।